Constitution : संविधान ( कंपनी का शासन 1773 से 1858 तक )

 संविधान से सम्बंधित कुछ महत्वपूर्ण जानकारियां 

1757 ई० की प्लासी की लड़ाई और 1764 ई० के बक्सर के युद्ध को अंग्रेजो द्वारा जीत लिए जाने के बादन बंगाल पर पर ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी  ने शासन का शिकंजा कसा ! इसी शासन को अपने अनुकूल बनाये रखने के लिए अंग्रेजो ने समय-समय पर कई एक्ट पारित किये, जो भारतीय संविधान के विकास की सीढ़िया बनी !

आइये जानते है उन एक्ट के बारे में जिसे ईस्ट इंडिया कंपनी के द्वारा लागु  किया गया -----शासन 

1773 ई० का रेगुलेटिंग एक्ट : ( The  Regulating Act of 1773 )
रेगुलेटिंग एक्ट 1773 ब्रिटिश सरकार के द्वारा उठाया गया पहला ऐसा कदम था, जिसके अन्तर्गत कंपनी के कार्यो को नियमित और नियंत्रित किया गया ! इस अधिनियम का अत्यधिक संवैधानिक महत्व है ! इसके द्वारा पहली बार कंपनी के प्रशासनिक और राजनैतिक कार्यो को मान्यता मिली ! इसके द्वारा भारत में केंद्रीय प्रशाशन की नीव रखी गई !
 अधिनियम की विशेषताएं ----
  1. इस अधिनियम द्वारा बंगाल के गवर्नर को बंगाल का गवर्नर जनरल पद नाम दिया गया एवं उसकी सहायता के लिए एक चार सदस्यीय कार्यकारी परिषद् का गठन किया गया ! उल्लेखनीय है की ऐसे पहले गवर्नर लॉर्ड वारेन हेस्टिंग्स थे !
  2. इसके द्वारा मद्रास एवं मुंबई के गवर्नर, बंगाल के गवर्नर जनरल के अधीन हो गए, जबकि प्रेसिडेंसियों के गवर्नर एक-दूसरे से अलग थे !
  3. अधिनियम अंतर्गत कलकत्ता में 1774 ई० एक उच्चतम न्यायलय की स्थापना की गई, जिसमे मुख्य न्यायाधीश और तीन अन्य न्यायधीश थे !
  4. इसके तहत कंपनी के कर्मचारियों को निजी व्यापर करने और भारतीय लोगो से उपहार व रिश्वत लेना प्रतिबंधित कर दिया गया !
  5. इस अधिनियम के द्वारा, ब्रिटिश सरकार का कोर्ट ऑफ डायरेक्टर्स  ( कंपनी के गवर्निंग बॉडी ) के माध्यम से कंपनी पर नियंत्रण सशक्त हो गया ! इसे भारत में इसके राजस्व, नागरिक और सैन्य मामलो की जानकारी ब्रिटिश सरकार को देना आवश्यक कर दिया गया !
1784 ई० का पिट्स इंडिया एक्ट : ( The Pitt's India Act of  1784 )
 रेगुलेटिंग एक्ट, 1773 की कमियों को दूर करने के लिए ब्रिटिश संसद ने एक संशोधित अधिनियम 1781 में पारित किया, जिसे एक्ट ऑफ सैटलमेंट के नाम से भी जाना जाता है ! इसके बाद एक अन्य महत्वपूर्ण अधिनियम पिट्स इंडिया एक्ट, 1784 में अस्तित्व में आया ! 
अधिनियम की विशेषताएं ----
  1. इसने कंपनी के राजनैतिक और वाणिज्यिक कार्यो को पृथक - पृथक कर दिया !
  2. इसने निदेशक मंडल को कंपनी के व्यापारिक मामलो के अधीक्षण की अनुमति तो दे दी लेकिन राजनैतिक मामलो के प्रबंधन के नियंत्रण बोर्ड ( बोर्ड ऑफ कंट्रोल ) नाम से एक नए निकाय का गठन कर दिया ! इस प्रकार द्वैध शासन की व्यवस्था का शुभांरभ किया गया !
  3. नियंत्रण बोर्ड को यह शक्ति थी कि वह ब्रिटिश नियंत्रित भारत में सभी नागरिक, सैन्य सरकार राजस्व गतिविधियों का अधीक्षण एवं नियंत्रण करे !
1833 का चार्टर अधिनियम  : ( The Charter Act of 1833 )
ब्रिटिश भारत के केन्द्रीयकरण की दिशा में यह अधिनियम निर्णायक कदम था ! इस अधिनियम की विशेषताएँ निम्नानुसार थी -
अधिनियम की विशेषताएं ----
  1. इसने बंगाल के गवर्नर जनरल को भारत का गवर्नर जनरल बना दिया, जिसमे सभी नागरिक और सैन्य शक्तियाँ निहित थी ! इस प्रकार, इस अधिनियम ने पहली बार एक ऐसी सरकार का निर्माण किया, जिसका ब्रिटिश कब्जे वाले सम्पूर्ण भारतीय क्षेत्र  नियंत्रण था ! लॉर्ड विलियम बैंटिक भारत के प्रथम गवर्नर जनरल थे !
  2. इसने मद्रास और बम्बई के गवर्नरों को विधायिका संबंधी शक्ति से वंचित कर दिया ! भारत के गवर्नर जनरल को पूरे ब्रिटिश भारत में विधायिका के असीमित अधिकार प्रदान कर दिए गए ! इसके अंतगर्त पहले बनाए गए कानूनों को नियामक कानून कहा गया और नए कानून के तहत बने कानूनों को एक्ट या अधिनियम कहा गया !
  3. ईस्ट इंडिया कंपनी की एक व्यापारिक निकाय के रूप में की जाने वाली गतिविधियों को समाप्त कर दिया गया ! अब यह विशुद्ध रूप से प्रशासनिक निकाय बन गया ! इसके तहत कंपनी के अधिकार वाले क्षेत्र ब्रिटिश राजशाही और उसके उत्तराधिकारियों के विश्वास के तहत ही कब्जे में रह गए !
  4. चार्टर एक्ट 1833 ने सिविल सेवकों के चयन के लिए खुली प्रतियोगिता का आयोजन शुरू करने का प्रयास किया ! इसमें कहा गया कि कंपनी में भारतीयों को किसी पद, कार्यालय और रोजगार हासिल करने से वंचित  नहीं किया जायेगा ! हालांकि कोर्ट ऑफ़ डायरेक्टर्स के विरोध के कारन एक प्रावधान को समाप्त कर दिया गया !
1853 का चार्टर अधिनियम  : ( The Charter Act of 1853 )
1793 से 1853 के दौरान ब्रिटिश संसद द्वारा पारित किये गए चार्टर अधिनियमों की शृंखला में यह अंतिम अधिनियम था ! संवैधानिक विकास की दृष्टि से यह अधिनियम एक महत्वपूर्ण अधिनियम था ! इस अधिनियम की विशेषताएं निम्नानुसार थी :
  1. इसने पहली बार गवर्नर जनरल की परिषद्  के विधायी एवं प्रशासनिक कार्यो को अलग कर दिया ! इसके तहत परिषद् में छह नए पार्षद और जोड़े गए, इन्हे विधान विधान पार्षद कहा गया ! दूसरे शब्दों में, इसने गवर्नर जनरल के लिए नई विधान परिषद् का गठन किया, जिसे भारतीय विधान परिषद् कहा गया ! परिषद् की इस शाखा ने छोटी संसद की तरह कार्य किया ! इसमें वही प्रक्रियाए अपनाई गई, जो ब्रिटिश संसद अपनाई जाती थी ! इस प्रकार, विधायिका को पहली बार सरकार के विशेष कार्य के रूप में जाना गया, जिसके लिए विशेष मशीनरी और प्रक्रिया की जरुरत थी !
  2. इसने सिविल सेवको की भर्ती एवं चयन हेतु खुली प्रतियोगिता  व्यवस्था का शुभांरभ किया, इस प्रकार विशिष्ट सिविल सेवा भारतीय नागरिको के लिए खोल  खोल दी गई और इसके  लिए 1854 ( भारतीय सिविल सेवा के सम्बन्ध में ) मैकाले समिति की नियुक्ति की गई !
  3. इसने कंपनी के शासन को विस्तारित कर दिया और भारतीय क्षेत्र को इंग्लैंड राजशाही के विश्वास के तहत कब्जे में रखने का अधिकार दिया ! लेकिन पूर्व अधिनियमों के विपरीत इसमें किसी निश्चित समय का निर्धारण नहीं किया गया था ! इससे स्पष्ट था संसद द्वारा कंपनी का शासन किसी भी समय समाप्त किया  सकता था !
  4. इसने  प्रथम बार भारतीय केंद्रीय विधान परिषद् में स्थानीय प्रतिनिधित्व प्रारम्भ किया ! गवर्नर-जनरल की परिषद् में. छह नए सदस्यों में से चार का चुनाव बंगाल, मद्रास, बम्बई और आगरा की स्थानीय स्थानीय प्रांतीय सरकारों द्वारा किया जाना था ! 
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