Constitution : संविधान ( ताज का शासन 1858 से 1947 तक )

 ताज का शासन 1858 से 1947 तक 

1858 का भारत शासन अधिनियम 

इस महत्वपूर्ण कानून  का निर्माण 1857 के विद्रोह के बाद किया गया, जिसे भारत का प्रथम स्वंत्रता संग्राम या सिपाही विद्रोह भी कहा जाता है ! भारत के शासन को अच्छा बनाने वाला अधिनियम नाम के प्रसिद्ध इस कानून ने ईस्ट इंडिया कंपनी को समाप्त कर दिया और गवर्नरों, क्षेत्रो और राजस्व सबंधी शक्तिया ब्रिटिश राजशाही को हस्तांतरित कर दी !

अधिनियम की विशेषताएं 

  1. इसके तहत भारत का शासन सीधे महारानी विक्टोरिया के अधीन चला गया ! गवर्नर जनरल का पदनाम बदलकर भारत का वायसराय कर दिया गया ! भारत में ब्रिटिश ताज का प्रत्यक्ष प्रतिनिधि बन गया ! लॉर्ड कैनिंग भारत के प्रथम वायसराय बने !
  2. इस अधिनियम ने नियंत्रण बोर्ड और निदेशक कोर्ट समाप्त कर भारत में शासन की द्वैध प्रणाली समाप्त कर दी !
  3. एक नए पद, भारत के राज्य सचिव, का सृजन किया गया, जिसमे भारतीय प्रशासन पर सम्पूर्ण नियंत्रण की शक्ति निहित थी ! यह सचिव ब्रिटिश कैबिनेट का सदस्य था और ब्रिटिश अंततः संसद के प्रति उत्तरदायी !था 
  4.  भारत सचिव की  सहायता के लिए 15 सदस्यीय परिषद् का गठन किया गया, जो एक सलाहकार समिति थी ! परिषद् का अध्यक्ष भारत सचिव को बनाया गया !
  5. इस कानून  के तहत भारत सचिव की परिषद् का गठन किया गया, जो एक निगमित निकाय थी और जिसे भारत और इंग्लॅण्ड में मुक़दमा करने  का अधिकार था ! इस पर भी मुकदमा किया जा सकता था !
1858 के कानून का  प्रमुख उद्देश्य, प्रशाशनिक मशीनरो में सुधार था, जिसके माध्यम से इंग्लैंड में भारतीय सरकार का अधीक्षण और उसका नियंत्रण हो सकता था ! इसने भारत में प्रचलित शासन प्रणाली में कोई विशेष परिवर्तन नहीं किया !

 1861, 1892 और 1909  के भारत परिषद् अधिनियम 
1857  की महान  क्रांति के बाद ब्रिटिश सरकार ने महसूस किया की भारत में शासन चलाने के लिए भारतियों का सहयोग लेना आवश्यक है ! एक सहयोग नीति के तहत ब्रिटिश संसद ने 1861, 1892 और 1909 में तीन नए अधिनियम पारित किये ! 1861 का भारत परिषद् अधिनियम भारतीय संवैधानिक और राजनैतिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण अधिनियम था !

1861 के भारत परिषद् अधिनियम की विशेषताएं 
  1.  इसके द्वारा कानून बनाने की प्रक्रिया  में भारतीय   प्रतिनिधियों को शामिल करने की शुरुआत हुई ! इस प्रकार वायसराय कुछ भारतियों को विस्तारित परिषद् में गैर - सरकारी सदस्यों के रूप में नामांकित कर सकता था ! 1862 में लॉर्ड कैनिंग ने तीन भारतियों- बनारस के राजा, पटियाला के महाराजा और सर दिनकर विधान परिषद् में मनोनीत किया !
  2. इस अधिनियम ने मद्रास और मुंबई प्रेसिडेंसी को विधायी शक्तिया पुनः देकर विकेन्द्रीकरण की प्रक्रिया की शुरुआत की ! इस प्रकार इस अधिनियम ने रेगुलेटिंग एक्ट 1773 द्वारा शुरू हुई केन्द्रीयकरण की प्रवृति को उलट दिया और 1833 के चार्टर अधिनियम के साथ ही अपने चरम पर पहुँच गया ! इस विधायी विकास की नीति के कारन 1937 तक प्रांतो को सम्पूर्ण आंतरिक स्वायत्तता हासिल हो गई !
  3. बंगाल, उत्तर-पश्चिम सीमा प्रान्त और पंजाब में क्रमशः 1862, 1866 और 1897 में विधानपरिषदों का गठन हुआ !
  4. इसने वायसराय को परिषद् में कार्य संचालन के लिए अधिक नियम और आदेश बनाने की शक्तिया प्रदान की ! इसने लॉर्ड कैनिंग द्वारा 1859 में प्रारम्भ की गई पोर्टफोलियो प्रणाली को भी मान्यता दी ! इसके अंतर्गत वायसराय की परिषद् का एक सदस्य एक या अधिक सरकारी विभागों का प्रभारी बनाया जा सकता था तथा इस विभाग में काउंसिल की ओर से अंतिम आदेश पारित करने का अधिकार था !
  5. इसने वायसराय को आपातकाल में बिना काउंसिल की संस्तुति के अध्यादेश जारी करने के लिए अधिकृत किया ! ऐसे अध्यादेश की अवधि मात्र छह माह होती थी !
1892  के भारत परिषद् अधिनियम की विशेषताएं 
  1. अप्रत्यक्ष चुनाव-प्रणाली की शुरुआत हुई !
  2. इसके द्वारा राजस्व एवं व्यय अथवा बजट पर बहस करने तथा कार्यकारिणी से प्रश्न पूछने की शक्ति दी गई !
1909  के भारत परिषद् अधिनियम की विशेषताएं 
                इस अधिनियम को मार्ले-मिंटो सुधार के नाम से भी जाना जाता है !
  1.  इसने केंद्रीय और प्रांतीय विधानपरिषदों के आकर में काफी वृद्धि की ! केंद्रीय परिषद् में इनकी संख्या 16 से 60 हो गई ! प्रांतीय विधानपरिषदों में इनकी संख्या एक सामान नहीं थी !
  2. इसने केंद्रीय परिषद् में सरकारी बहुमत को बनाये रखा लेकिन प्रांतीय परिषदों में गैर - सरकारी सदस्यों के बहुमत की अनुमति थी !
  3. इसने दोनों स्तरों पर विधान परिषदों के चर्चा कार्यों  का दायरा बढ़ाया ! उदाहरण के तौर पर अनुपूरक प्रश्न पूछना, बजट पर संकल्प रखना आदि !
  4. इस अधिनियम के अंतर्गत पहली बार किसी भारतियों को वायसराय और गवर्नर की कार्य परिषद् के साथ एसोसिएशन बनाने का प्रावधान किया गया ! सत्येंद्र प्रसाद सिन्हा वायसराय  कार्यपालिका परिषद् के प्रथम भारतीय बने !
  5. इस अधिनियम ने पृथक निर्वाचन के आधार पर मुस्लिमो के लिए सांप्रदायिक प्रतिनिधित्व का प्रावधान किया ! इसके अंतर्गत मुस्लिम सदस्यों का चुनाव मुस्लिम मतदाता ही कर सकते थे ! इस प्रकाश इस अधिनियम ने साम्प्रदायिकता को वैधानिकता प्रदान की और लॉर्ड मिंटो को सांप्रदायिक निर्वाचन के जनक के रूप में जाना गया !
  6. इसने प्रेसिडेंडी कॉर्पोरेशन, चैम्बर्स ऑफ़ कॉमर्स विश्वविधायालयों और जमीदारो के लिए अलग प्रतिनिधित्व का  किया !
भारत शासन अधिनियम,  1919 
 20  अगस्त 1917 को ब्रिटिश  सरकार ने पहली बार घोषित किया की उसका उद्देश्य भारत में क्रमिक रूप से उत्तरदायी सरकार की स्थापना करना था !
क्रमिक रूप से 1919 में भारत शासन अधिनियम बनाया गया, जो 1921 से लागु हुआ  ! इस कानून को मांटेग-चेम्सफोर्ड सुधार भी कहा जाता है !
अधिनियम की विशेषताएं 
  1. केंद्रीय और प्रांतीय विषयों की सूची की पहचान कर एवं उन्हें पृथक कर राज्यों पर केंद्रीय नियंत्रण काम किया गया ! केंद्रीय और प्रांतीय विधान परिषदों को, अपनी सूचियों के विषयों पर विधान बनाने का अधिकार प्रदान किया गया ! लेकिन सरकार का ढांचा केंद्रीय  एकात्मक ही बना रहा !
  2. इसने प्रांतीय विषयो को पुनः दो भागो में विभक्त किया - हस्तांतरित और आरक्षित ! हस्तांतरित विषयों पर गवर्नर का शासन  होता था और इस कार्य में उन मंत्रियों की सहायता  लेता था, जो विधान परिषद के प्रति उत्तरदायी थे ! दूसरी  आरक्षित विषयों  पर गवर्नर कार्यपालिका परिषद् की सहायता से शासन करता था !
  3. इस अधिनियम ने पहली बार देश में द्विसदनीय व्यवस्था और प्रतयक्ष निर्वाचन की व्यवस्था प्रारम्भ की ! इस प्रकार भारतीय विधान परिषद् के स्थान पर द्विसदनीय व्यवस्था यानी राज्यसभा और लोकसभा का गठन किया गया ! दोनी सदनों के बहुसंख्यक सदस्यों  प्रत्यक्ष निर्वाचन  के माध्यम से निर्वाचित किया जाता था !
  4. इसके अनुसार, वायसराय की कार्यकारी परिषद् के छह सदस्यों में से तीन सदस्यों का भारतीय होना आवश्यक था !
  5. इसने सांप्रदायिक आधार पर सिखों, भारतीय ईसाईयों, आंग्ल-भारतियों और यूरोपीयों के लिए भी पृथक निर्वाचन के सिद्धांत को विस्तारित कर दिया !
  6. इस कानून ने सम्पति, कर या शिक्षा  के आधार पर सीमित संख्या में लोगो को मताधिकार प्रदान किया !
  7. इस कानून ने लंदन में भारत के उच्चायुक्त के कार्यालय का सृजन किया और  अब तक भारत सचिव द्वारा किये जा रहे कुछ कार्यों को उच्चायुक्त को स्थान्तरित कर दिया गया !
  8. इससे एक लोक सेवा आयोग का गठन किया गया ! अतः 1926 में सिविल सेवको की भर्ती के लिए केंद्रीय लोक सेवा आयोग का गठन किया गया !
  9. इसने पहली बार केंद्रीय बजट को राज्यों बजट से अलग कर दिया और राज्य विधानसभाओ को अपना बजट स्वयं बनाने के लिए अधिकृत कर दिया !
  10. इसके अंतर्गत एक वैधानिक आयोग का गठन किया गया, जिसका कार्य दस वर्ष बाद जाँच करने के बाद अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करना था !
साइमन आयोग  
ब्रिटिश सरकार ने नवम्बर 1927 में नए संविधान में भारत की स्थिति का पता लगाने के लिए सर जॉन साइमन के नेतृत्व में सात सदस्यीय वैधानिक आयोग के गठन को घोषणा की ! आयोग के सभी सदस्य ब्रिटिश थे, इसलिए सभी दलों ने इसका बहिष्कार किया ! आयोग ने 1930 में अपनी रिपोर्ट पेश की तथा द्वैध शासन प्रणाली, राज्यों में सरकारों का विस्तार, ब्रिटिश भारत के संघ की स्थापना एवं सांप्रदायिक निर्वाचन व्यवस्था को ज.आरी रखने आदि की सिफारिशें की ! आयोग के प्रस्तावों पर विचार करने के लिए ब्रिटिश सरकार ने ब्रिटिश सरकार, ब्रिटिश भारत और भारतीय रियासतों के प्रतिनिधिओ के साथ तीन गोलमेज सम्मलेन किये ! इन सम्मेलनों में हुई चर्चा के आधार पर, संवैधानिक सुधारो पर एक श्वेत - पत्र तैयार गया किया, जिसे विचार के लिए ब्रिटिश संसद की संयुक्त प्रवर समिति के समक्ष रखा गया ! इस समिति की सिफारिशों को भारत परिषद् अधिनियम 1935 में शामिल कर दिया गया !
सांप्रदायिक अवार्ड  
 ब्रिटिश प्रधानमंत्री रैमजे मैकडोनाल्ड ने अगस्त 1932 में अल्पसंख्यकों के प्रतिनिधित्व पर एक योजना घोषणा की !  कम्युनल अवार्ड या सांप्रदायिक अवार्ड के नाम से जाना गया !
अवार्ड ने न सिर्फ मुस्लिमों, सिखों, ईसाई, यूरोपियनों और आंग्ल-भारतियों के लिए अलग निर्वाचन व्यवस्था विस्तार किया बल्कि दलितों के लिए भी विस्तारित कर दिया गया ! दलितों के लिए अलग निर्वाचन व्यवस्था से गाँधी बहुत व्यथित हुए और उन्होंने अवार्ड में संशोधन के लिए पूना  यरवदा जेल में अनशन प्रारम्भ कर !दिया !
अंततः कांग्रेस नेताओं और दलित नेताओ के बीच एक समझौता हुआ. जिसे पूना समझौता के नाम से जाना गया ! इसमें संयुक्त हिन्दू  व्यवस्था को बनाये रखा और दलितों के लिए स्थान भी आरक्षित कर दिए गए !

भारत शासन अधिनियम,  1935  
यह अधिनियम भारत में पूर्ण उत्तरदायी सरकार के गठन में एक मिल का पत्थर साबित हुआ ! यह एक लंबा और विस्तृत दस्तावेज था , जिसमे 321 धाराएं और 10 अनुसूचियाँ थी !
अधिनियम की विशेषताएं 
  1. इसने अखिल भारतीय संघ की स्थापना की, जिसमे राज्य और रियासतों को एक इकाई की तरह माना गया ! अधिनियम ने केंद्र और इकाइयों के बीच तीन सूचियों- संघीय सूची ( 59 विषय ), राज्य सूची ( 54 विषय ) और समवर्ती सूची ( दोनों के लिए 36 विषय ) के आधार पर शक्तियों का बटवारा  कर दिया ! अवशिष्ट शक्तियां वायसराय को दे दी गई ! हलाकि यह संघीय व्यवस्था कभी अस्तित्व में नहीं आई क्योकि देसी रियासतों ने इसमें शामिल होने से इंकार कर दिया था !
  2. इसने प्रांतो में द्वैध शासन व्यवस्था समाप्त कर दी तथा प्रांतीय स्वायत्तता का शुंभारंभ किया ! राज्यों को अपने दायरे में रह कर स्वायत्त तरीके से तीन पृथक क्षेत्रो में शासन का अधिकार दिया गया !इसके अतिरिक्त अधिनियम ने राज्यों में उत्तरदायी सरकार की स्थापना की ! यानी गवर्नर को राज्य विधान परिषदों के लिए उत्तरदायी मंत्रियों की सलाह पर काम करना आवश्यक था ! यह व्यवस्था 1937 में शुरू की गई और 1939 में इसे समाप्त कर दिया गया !
  3. इसने केंद्र में द्वैध शासन प्रणाली का शुभारंभ किया !परिणामतः संघीय विषयों को स्थानांतरित और आरक्षित विषयों में विभक्त करना पड़ा ! हालाँकि यह प्रावधान कभी लागू नहीं हो सका !
  4. इसने 11 राज्यों में से छह द्विसदनीय व्यवस्था प्रारम्भ की ! इस प्रकार, बंगाल, बम्बई, मद्रास, बिहार, संयुक्त प्रान्त और असं में द्विसदनीय विधान परिषद् और विधानसभा बन गई ! हालाँकि  इन पर कई प्रकार के प्रतिबन्ध थे !
  5. इसने दलित जातियों, महिलाओ और मजदुर वर्ग के लिए अलग से निर्वाचन की व्यवस्था कर सांप्रदायिक प्रतिनिधित्व व्यवस्था का विस्तार किया !
  6. इसने भारत शासन अधिनियम, 1858 द्वारा स्थापित भारत परिषद् को समाप्त कर दिया ! इंग्लैंड में भारत सचिव को सलाहकारों की टीम मिल गई !
  7. इसने मताधिकार का विस्तार किया ! लगभग दस प्रतिशत जनसँख्या को मत का अधिकार मिल गया !
  8. इसके अंर्तगत देश की मुद्रा और साख पर नियंत्रण के लिए भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना की गई !
  9. इसने न केवल संघीय लोक सेवा आयोग स्थापना की बल्कि प्रांतीय सेवा आयोग और दो या अधिक राज्यों के लिए संयुक्त सेवा आयोग की स्थापना भी की !
  10. इसके तहत 1937 में संघीय न्यायलय की स्थापना हुई !
भारत स्वंत्रता अधिनियम,  1947  
 20 फरबरी 1947 को ब्रिटिश प्रधानमंत्री क्लीमेंट एटली ने घोषणा की कि 30 जून 1947 को भारत में ब्रिटिश शासन समाप्त हो जायेगा ! इसके बाद सत्ता उत्तरदायी भारतीय हाथों में सौंप दी जाएगी ! इस घोषणा पर मुस्लिम लीग ने आंदोलन किया और भारत के विभाजन की बात कही ! 3 जून 1947 को ब्रिटिश सरकार ने फिर स्पष्ट किया की 1946 में गठित संविधान सभा द्वारा बनाया गया संविधान उन क्षेत्रो में लागु नहीं होगा, ज इसे स्वीकार नहीं करेंगे ! उसी दिन 3 जून 1947 को वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन ने विभाजन की योजना पेश की, जिसे माउंटबेटन योजना काहा गया ! इस योजना को कांग्रेस और मुस्लिम लीग ने स्वीकार कर लिया ! इस प्रकार भारतीय स्वंत्रता अधिनियम 1947 बनाकर लागू कर दिया गया !
अधिनियम की विशेषताएं 
  1. इसने भारत में ब्रिटिश राज समाप्त कर 15 अगस्त 1947 को इसे स्वतंत्र और संप्रभु राष्ट्र घोषित कर दिया !
  2. इसने भारत का विभाजन कर दो स्वतंत्र डोमिनयनों-संप्रभु राष्ट्र भारत और पाकिस्तान का सृजन किया, जिन्हे ब्रिटिश राष्ट्रमंडल से अलग होने की स्वंतंत्रता थी !
  3. इसने वायसराय का पद समाप्त कर दिया और उसके स्थान पर दोनों डोमिनयन राज्यों में गवर्नर- जनरल पद का सृजन किया। जिसकी नियक्ति नए राष्ट्र की कैबिनेट की सिफारिश पर ब्रिटेन के ताज को करनी थी ! इन पर ब्रिटेन की सरकार का कोई भी नियंत्रण नहीं होना था ! 
  4. इसने दोनी डोमिनियन राज्यों संविधान सभाओ को अपने देशों का संविधान बनाने और उसके लिए किसी भी देशः के संविधान को अपनाने की शक्ति दी ! सभाओ को यह भी शक्ति थी की वे किसी भी ब्रिटिश कानून को समाप्त करने के लिए कानून बना सकती थी ! यहाँ तक की उन्हें स्वंतंत्रता अधिनियम को भी निरस्त करने का अधिकार था !
  5. इसने दोनों डोमिनयन राज्यों की संविधान सभाओ को यह शक्ति प्रदान की कि वे नए संविधान का निर्माण एवं कार्यान्वित होने तक अपने-अपने सम्बंधित क्षेत्रो के लिए विधानसभा बना सकती थी ! 15 अगस्त 1947 के बाद ब्रिटिश संसद में पारित हुआ कोई भी अधिनियम दोनों डोमिनियन पर तब तक लागु नहीं होगा, जब तक की दोनों डोमिनियन इस कानून को मानने के लिए कानून नहीं बना लेंगे !
  6.  इस कानून ने ब्रिटेन में भारत सचिव का पद समाप्त कर दिया ! इसकी सभी शक्तियां राष्ट्रमंडल मामलो के राज्य सचिव को स्थानांतरित कर दी गई !
  7. इसने 15 अगस्त 1947 से भारतीय रियासतों पर ब्रिटिश सम्प्रभुता की समाप्ति की भी घोषणा की ! इसके साथ ही आदिवासी क्षेत्र समझौता संबंधो पर भी ब्रिटिश हस्तक्षेप समाप्त हो गया !
  8. इसने भारतीय रियासतों को यह स्वतंत्रता दी कि वे चाहें तो भारत डोमिनियन या पाकिस्तान डोमिनियन के साथ मिल सकती है  या स्वतंत्र रह सकती है !
  9. इस अधिनियम ने  नया संविधान बनने तक प्रत्येक डोमिनियन में शासन संचालित करने एवं भारत शासन अधिनियम 1935 के तहत उनकी प्रांतीय सभाओ में सर्कार चलाने की व्यवस्था की ! हालांकि दोनों डोमिनियन राज्यों को इस कानून में सुधार करने का अधिकार था 
  10.  इसने ब्रिटिश शासक को विधेयकों पर मताधिकार और उन्हें स्वीकृत करने के अधिकार से वंचित कर दिया ! लेकिन ब्रिटिश शासक के नाम पर गवर्नर   जनरल को किसी भी विधेयक को स्वीकार करने का अधिकार प्राप्त था !
  11. इसके अंतर्गत भारत के गवर्नर जनरल एवं प्रांतीय गवर्नरों को राज्यों का संवैधानिक प्रमुख नियुक्त किया गया ! इन्हे सभी मामलो पर राज्यों की मंत्रिपरिषद् के परामर्श पर कार्य करना होता था !
  12. इसने शाही  उपाधि से 'भारत का सम्राट' शब्द समाप्त कर दिया !
  13. इसने भारत के राज्य सचिव द्वारा  सिविल सेवा में नियुक्तियां करने और पदों में आरक्षण करने की प्रणाली समाप्त कर दी ! 15 अगस्त 1947 का पूर्व के सिविल सेवा कर्मचारियों को वही सुविधाएं मिलती रही, जो उन्हें पहले से प्राप्त थी !
 14 -15 अगस्त 1947 की मध्य रात्रि को भारत में ब्रिटिश शासन का अंत हो गया और समस्त शक्तियां दो नए स्वतंत्र डोमिनियनो- भारत और पाकिस्तान को स्थानांतरित कर दी गई ! लॉर्ड माउंटबेटन नए डोमिनियन भारत, के प्रथम गवर्नर-जनरल बने ! उन्होंने जवाहरलाल नेहरू को भारत के पहले प्रधानमंत्री के रूप में शपथ दिलाई ! 1946 में बनी संविधान  सभा को स्वतंत्र भारतीय डोमिनियन की संसद के रूप में स्वीकार कर लिया गया !

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